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चंपावत स्थित राष्ट्रीय शीतजल मत्स्यिकी अनुसंधान केंद ने विलुप्त हो रही ‘‘वाग्रा बैरिल’’ मछली के 5000 अंडों को विकसित करने में सफलता हासिल की

प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में विलुप्त हो रही देशी मछली ‘‘वाग्रा बैरिल’’ के संरक्षण में चंपावत स्थित राष्ट्रीय शीतजल मत्स्यिकी अनुसंधान केंद को बड़ी सफलता मिली है। निदेशालय ने 3 साल की अनुसंधान के बाद 5 हजार से अधिक अंडों को विकसित करने में सफलता हासिल की है। शीतजल अनुसंधान निदेशालय के प्रभारी वैज्ञानिक डॉक्टर किशोर कुणाल ने बताया कि पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली वाग्रा बैरिल मछली में न्यूट्रिशन और प्रोटीन अन्य मछलियों की तुलना में कही ज्यादा होता है। उन्होंने कहा कि इस मछली की विदेशों में काफी मांग है। डॉक्टर कुणाल ने बताया कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के माध्यम से किसानों की आय दोगुनी करने में सहायक होगी।

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